भगवान श्री राम तो मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये जाते है क्योकि उनके हर कार्य और कर्त्तव्य सामान्य मानव के लिए करना अत्यंत कठिन ही होगा पर अगर आज के मानव उन गुणों के कुछ भाग को भी ग्रहण करले तो भी अपने व्यक्तिगत और सामाजिक -व्यावसायिक जीवन में महान सफतला प्राप्त कर सकते है। उनका चरित्र इतना विशाल है की उनके सारे गुणों को बता पाना हमारे लिए असंभव है पर कुछ की चर्चा यहाँ पर कर रहे है।
अध्धयन शीलता – महाराज दसरथ ने जब उन्हें महर्षि वशिष्ट के आश्रम में शिक्षा के लिए भेजा तो उन्होंने अपनी शिक्षा बिना किसी व्यवधान के समय पर पूर्ण की।
मित्रता – प्रभु श्री राम अपने मित्रों को हमेशा अपने ही बराबर सम्मान दिया, चाहे वो निशाधराज, सुग्रीव या विभीषण ही क्यों न हो।
शत्रुता – उन्होंने अपने शत्रुओ से भी बड़ी विनम्रता से व्यवहार किया और बार बार सचेत किया की आप भी सद्मार्ग पर आ जाए जैसे रावण।
त्याग – प्रभु श्री राम अगले ही दिन जिस अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट बनाने वाले हो और वह का जनमानस भी उनके ही साथ हो फिर भी माता पिता की आज्ञा मानकर और अपने भाई के लिए राज पाठ का त्याग कर दिया।
सहज – इतनी सहजता की कोई भी उनके सामने अपनी बात रख सकते है यहाँ तक की उनके राज्य का धोबी भी अपने मन की शंका जो उनके ही खिलाफ थी रख पाया।
सहज प्रेमी– माता सीता से उनका अगाध प्रेम किसी से छुपा नहीं है उनके लिए वो पैदल श्रीलंका तक जा पहुंचे और उन्हें सुरक्छित वापस लाये।
सभी को सम्मान देने वाले – श्री राम ने गिध्ध जटायु को भी सम्मान दिया व उन्हें अपने पिता तुल्य ही सम्मान दिया।
लगातार सीखने वाले – भगवान श्री राम ने अपने १४ वर्ष के वनवास के समय आने ऋषि-मुनियो के आश्रम में जा के अपने ज्ञान को बढ़ाया जो बाद में लंका युद्धः में सहायक हुआ।
आत्मनिर्भर – प्रभु श्री राम का यह गुण सबमे श्रेठ है, क्योकि इतने बड़े साम्राज्य के महाराज होने के बाद भी माता सीताहरण या लंका युद्धः के समय कभी भी राजधानी अयोध्या से किंचित भी सहयोग लिया हो चाहे जो भी परिस्थि या कठिनाई उनके सामने आई उसका निवारण उन्होंने ने उनके पास जो उपलब्ध साधन से उसी से पूर्ण किया और विजयी हुए।
हमेशा उनको सम्मान देना जो उन्हें प्रेम करते है – “सबरी के बेर “ उनके जीवन का ये महान उदहारण है उन्होंने माँ सबरी का प्रेम देखा और उनके मातृत्व को सम्मानित करने के लिए उनके जूठे बेर भी खाये।
अपनी प्रतिज्ञा में अटल रहना – प्रभु श्री राम ने जो भी अपने हाथ में कार्य लिया जब तक वह पूर्ण नहीं हुआतब तक वो रुके नहीं रामायण में एक प्रसंग है जब उन्होंने रक्छासो के द्वारा खाई हुई हड्डियों के ढेर को देखा और प्रतिज्ञा ली की इनका मई समूल नाश करूँगा और किया।
संयमित – प्रभु श्री राम ने हमेशा संयमित रहे न अत्यधिक दुःख को हावी होने दिया और न ही सुख को।
कृतज्ञ – उनके जीवन काल में जो लोग उनके सहयोगी रहे श्री हनुमान म सुग्रीव विभीषण अंगद जामवंत और उनके छोटे भाई सभी के प्रति वो कृतज्ञ रहे।
“हरी अनंत हरी कथा अनंता” अतः हमें प्रभु श्रीराम के दिखाए गए मार्ग में चलना चाहिए जिससे एक सुन्दर और संगठित समाज की स्थापना कर पाएंगे जय श्री राम “